एशिया का नोबेल कहे जाने वाले रेमन मैग्सेेसे पुरस्कार के लिए पांच लोगों को चुना गया, जिनमें दो भारतीय हैं:-
1. अंशु गुप्ता- दिल्ली स्थित एनजीओ गूंज के संस्थापक हैं. वहीं अंशु गुप्ता ने कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर 1999 में एनजीओ गूंज की स्थापना की थी.
रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड फाउंडेशन ने अंशु गुप्ता के लिए लिखा गया है , ''उनकी जो दूरदर्शी सोच है वो भारत में एक-दूसरे को आगे बढ़कर मदद करने की सोच को बदल रही है. उनके नेतृत्व में कपड़ों को इस तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे कि वो ग़रीब वर्ग के लिए विकास का साधन साबित हो रहा है. साथ ही उन्होंने दुनिया को यह भी याद दिलाया है कि अगर असल मायने में कोई किसी को कुछ देता है तो इसमें मानवीय ग़रिमा की इज़्जत करना शामिल है.''
2. संजीव चतुर्वेदी- संजीव चतुर्वेदी एम्स के मुख़्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) रह चुके हैं. एम्स के सीवीओ बनने के बाद संजीव चतुर्वेदी ने उन डॉक्टरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जो अनाधिकृत रूप से विदेश यात्रा करते थे.
आरएमएएफ की प्रेस रिलीज़ के अनुसार संजीव चतुर्वेदी को उनकी अप्रत्याशित नेतृत्व क्षमता के लिए चुना गया है. विज्ञप्ति के अनुसार, ''उन्होंने ईमानदारी, साहस और तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए भ्रष्टाचार की जांच की. साथ ही उन्होंने ऐसा तरीका भी विकसित किया जिससे सरकार भारतीय जनता के लिए बेहतर तरीके से काम कर सके.''
3. कोमाली चंतावॉन्ग- जो लाओस की रेशम बुनने की प्राचनी विधा को फिर से सामने लाकर आईं और उन लोगों तक पहुंचाया जो इससे अपनी जीविका चलाते हैं.
4. लिगाया फर्नेन्डो अमिलबांग्सा- फिलीपींस की लिगाया फर्नेन्डो अमिलबांग्सा को दक्षिण फिलीपींस के लुप्तप्राय कलात्मक विरासत को बचाने का श्रेय जाता है.
5. क्वा थू- म्यांमार के क्वा थू को म्यांमार में जीवित और यहां तक कि मृत व्यक्तियों के मूलभूत अधिकारों के लिए लड़ने के लिए यह पुरस्कार दिया गया है.
भारत से इन्हें भी मिला
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भारत से कई लोगों को यह अवॉर्ड मिल चुका है, उनमे से चंद चर्चित नाम:
मदर टेरेसा, 1962
वर्गीस कूरियन, 1963
जयप्रकाश नारायण, 1965
सत्यजीत रे, 1967
किरण बेदी, 1994
महाश्वेता देवी, 1997
जेम्स माइकल लिंगदोह, 2003
वी. शांता, 2005
अरविंद केजरीवाल, 2006