Wednesday 22 July 2015

Earthquake in depth from the surface of the earth

अगर हम भूकंप के कारणों की बात करें तो वैज्ञानिक बताते हैं कि धरती या समुद्र के अंदर होने वाली विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के कारण ये भूकंप आते हैं। अधिकांश भूकंपों की उत्पत्ति धरती की सतह से 30 से 100 किलोमीटर अंदर होती है। सतह के नीचे धरती की परत ठंडी होने और कम दबाव के कारण भंगुर होती है। ऐसी स्थिति में जब अचानक चट्टानें गिरती हैं तो भूकंप आता है। एक अन्य प्रकार के भूकंप सतह से 100 से 650 किलोमीटर नीचे होते हैं। इतनी गहराई में धरती इतनी गर्म होती है कि सिद्धांतत: चट्टानें द्रव रूप में होनी चाहिए, यानि किसी झटके या टक्कर की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए। लेकिन ये चट्टानें भारी दबाव के माहौल में होती हैं। इसलिए यदि इतनी गहराई में भूकंप आए तो निश्चय ही भारी ऊर्जा बाहर निकलेगी।
धरती की सतह से काफ़ी गहराई में उत्पन्न अब तक का सबसे बड़ा भूकंप 1994 में बोलीविया में रिकॉर्ड किया गया। सतह से 600 किलोमीटर दर्ज इस भूकंप की तीव्रता रियेक्टर पैमाने पर 8.3 मापी गई थी। हालाँकि वैज्ञानिक समुदाय का अब भी मानना है कि इतनी गहराई में भूकंप नहीं आने चाहिए क्योंकि चट्टान द्रव रूप में होते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि विभिन्न रासायनिकों क्रियाओं के कारण ये भूकंप आते होंगे। अत्यंत गहराई में आने वाले भूकंपों के बारे में ताज़ा अध्ययन यूनवर्सिटी कॉलेज, लंदन के मिनरल आइस एंड रॉक फिज़िक्स लैबोरेटरी में किया गया है। वैज्ञानिकों ने धरती की सतह के काफ़ी भीतर आने वाले भूंकपों की ही तरह नकली भूकंप प्रयोगशाला में पैदा करने में सफलता पाई है। ऐसे भूकंप आमतौर पर धरती की सतह से सैंकड़ों किलोमीटर अंदर होते हैं, और वैज्ञानिकों की तो यह राय है कि ऐसे भूकंप वास्तव में होते नहीं हैं।