जलियाँवाला बाग़ नरसंहार के मुख्या 'जनरल डायर' को मार, सैकड़ों भारतीय क्रांतिकारियों की हत्या का बदला लेने
वाले माँ भारती के वीर सपूत शहीद-ए-आज़म “ऊधम सिंह” के बलिदान दिवस पर शत शत नमन ।
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कोंग्रेस की सरकार नेहरू परिवार को याद करने के लिए लाखों रुपये बहाती है, लेकिन कभी भी देश के सच्चे सपूतों को याद नहीं करती, वर्ष 2010 आर टी आई से पता चला कि सैकड़ों करोड़ रुपये इंदिरा व राजीव जयंती के नाम पर फूंके गये थे, जबकि सच्चे क्रन्तिकारी रानी लक्ष्मी बाई से लेकर सुभाष चन्द्र बोस तक किसी को भी आजतक याद नहीं किया गया, आइये हम शहीद उधम सिंह को भारत स्वाभिमान की और से नमन व स्मरण करते है.....
शहीद उधम सिंह के घर का यह चित्र हमारी भारत स्वाभिमान की सुनाम इकाई द्वारा भाई परमिंदर जोल्ली द्वारा भेजा गया है
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लोगों ने जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी थी, जिसमें ऊधम सिंह पानी पिलाने का काम कर रहे थे। पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडायर किसी कीमत पर इस सभा को नहीं होने देना चाहता था और उसकी सहमति से ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर ने जलियांवाला बाग को घेरकर अंधाधुंध
फायरिंग करा दी। अचानक हुई गोलीबारी से बाग में भगदड़ मच गई। बहुत से लोग जहां गोलियों से मारे गए, वहीं बहुतों की जान भगदड़ ने ले ली। जान बचाने की कोशिश में बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका के अनुसार 120 शव तो कुएं से ही बरामद हुए।
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ऊधम को जिस वक्त का इंतजार था वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओडायर लंदन के कॉक्सटन हाल में एक सेमिनार में शामिल होने गया। भारत के इस सपूत ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार के रूप में काटा और उसमें अपनी रिवॉल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। चमन लाल के अनुसार मोर्चा संभालकर बैठे ऊधम सिंह ने सभा के अंत में ओडायर की ओर गोलियां दागनी शुरू कर दीं। सैकड़ों भारतीयों के कत्ल के गुनाहगार इस गोरे को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के बाद इस महान क्रांतिकारी ने समर्पण कर दिया। उन पर मुकदमा चला और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में यह वीर हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया।
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जी हाँ, यही टुटा फूटा स्मारक है, हमारे देश अपनी जान देने
वाले का,इसके अतिरिक्त कहीं और कही कोई स्मारक नहीं
यही पुश्तैनी स्थान उनके घर होता था.............
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वर्ष 2011 तक शहीदे आजम उधम सिंह के पोते के परिवार के सदस्य सिर पर ईंटें ढोकर दैनिक मजदूरी करके पेट पाल रहे थे
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यह जानकारी मिलने पर शहीद ऊधम सिंह के वंशज जीत सिंह को कांबोज धर्मशाला रादौर की ओर से 1 लाख 41 हजार रुपये की सहायता राशि भेंट की गई। वहीं शिवनाथ झा व उसकी पत्नी मीना झा को जय भगवान शर्मा ने 2 लाख रुपये की नकद राशि दी। जीत सिंह के साथ उनका बेटा जग्ग सिंह भी आया था। इस अवसर पर रामप्रकाश ने रादौर में निर्माणधीन शहीदे आजम उधम सिंह कांबोज धर्मशाला के लिए सात लाख रुपये देने
की घोषणा की।
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शहीदों के गुमनाम वारिसों पर फिल्म बनाने वाले शिवानंद झा ने कहा कि देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले शहीदों के गुमनाम वारिसों के लिए हमें कुछ करना होगा। मेरा पूरा प्रयास होगा कि ऐसे गुमनाम वारिसों को देश की जनता के सामने लाए जाए।
वाले माँ भारती के वीर सपूत शहीद-ए-आज़म “ऊधम सिंह” के बलिदान दिवस पर शत शत नमन ।
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कोंग्रेस की सरकार नेहरू परिवार को याद करने के लिए लाखों रुपये बहाती है, लेकिन कभी भी देश के सच्चे सपूतों को याद नहीं करती, वर्ष 2010 आर टी आई से पता चला कि सैकड़ों करोड़ रुपये इंदिरा व राजीव जयंती के नाम पर फूंके गये थे, जबकि सच्चे क्रन्तिकारी रानी लक्ष्मी बाई से लेकर सुभाष चन्द्र बोस तक किसी को भी आजतक याद नहीं किया गया, आइये हम शहीद उधम सिंह को भारत स्वाभिमान की और से नमन व स्मरण करते है.....
शहीद उधम सिंह के घर का यह चित्र हमारी भारत स्वाभिमान की सुनाम इकाई द्वारा भाई परमिंदर जोल्ली द्वारा भेजा गया है
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लोगों ने जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी थी, जिसमें ऊधम सिंह पानी पिलाने का काम कर रहे थे। पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडायर किसी कीमत पर इस सभा को नहीं होने देना चाहता था और उसकी सहमति से ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर ने जलियांवाला बाग को घेरकर अंधाधुंध
फायरिंग करा दी। अचानक हुई गोलीबारी से बाग में भगदड़ मच गई। बहुत से लोग जहां गोलियों से मारे गए, वहीं बहुतों की जान भगदड़ ने ले ली। जान बचाने की कोशिश में बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका के अनुसार 120 शव तो कुएं से ही बरामद हुए।
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ऊधम को जिस वक्त का इंतजार था वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओडायर लंदन के कॉक्सटन हाल में एक सेमिनार में शामिल होने गया। भारत के इस सपूत ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार के रूप में काटा और उसमें अपनी रिवॉल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। चमन लाल के अनुसार मोर्चा संभालकर बैठे ऊधम सिंह ने सभा के अंत में ओडायर की ओर गोलियां दागनी शुरू कर दीं। सैकड़ों भारतीयों के कत्ल के गुनाहगार इस गोरे को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के बाद इस महान क्रांतिकारी ने समर्पण कर दिया। उन पर मुकदमा चला और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में यह वीर हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया।
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जी हाँ, यही टुटा फूटा स्मारक है, हमारे देश अपनी जान देने
वाले का,इसके अतिरिक्त कहीं और कही कोई स्मारक नहीं
यही पुश्तैनी स्थान उनके घर होता था.............
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वर्ष 2011 तक शहीदे आजम उधम सिंह के पोते के परिवार के सदस्य सिर पर ईंटें ढोकर दैनिक मजदूरी करके पेट पाल रहे थे
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यह जानकारी मिलने पर शहीद ऊधम सिंह के वंशज जीत सिंह को कांबोज धर्मशाला रादौर की ओर से 1 लाख 41 हजार रुपये की सहायता राशि भेंट की गई। वहीं शिवनाथ झा व उसकी पत्नी मीना झा को जय भगवान शर्मा ने 2 लाख रुपये की नकद राशि दी। जीत सिंह के साथ उनका बेटा जग्ग सिंह भी आया था। इस अवसर पर रामप्रकाश ने रादौर में निर्माणधीन शहीदे आजम उधम सिंह कांबोज धर्मशाला के लिए सात लाख रुपये देने
की घोषणा की।
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शहीदों के गुमनाम वारिसों पर फिल्म बनाने वाले शिवानंद झा ने कहा कि देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले शहीदों के गुमनाम वारिसों के लिए हमें कुछ करना होगा। मेरा पूरा प्रयास होगा कि ऐसे गुमनाम वारिसों को देश की जनता के सामने लाए जाए।