Tuesday 23 February 2016

Jainism tricks in hindi

जैन धर्म(Trick): 24 तीर्थंकर के नाम सूचीबद्ध
जैन परम्परा के अनुसार जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए।

Trick- “ऋषभ और अजित ने सम्भव ही अधर्मी पद की सुचना पुष्परूपी शीशे में वास करने वाले विमलजी को दी।
फिर अनन्त धर्म तक शकुन्तलआ मासी ने आपको महावीर स्वामी कहा।”

1. ऋषभ- ऋषभदेव या आदिनाथ
और-silent
2. अजित- अजितनाथ
ने-silent
3. सम्भव- सम्भवनाथ
ही-silent
‪#‎अधर्मी‬- अ+धर्मी
4. अ- अभिनन्दन
5. धर्मी- धर्म/सुमतिनाथ
6. पद- पद्मप्रभु
की-silent
‪#‎सुचना‬- सु+चना
7. सु- सुपार्श्वनाथ
8. चना- चंद्रप्रभु
9. पुष्परूपी- पुष्पदंत/सुविधिनाथ
शीशे- शी+शे
10. शी- शीतलनाथ
11. शे- श्रेयांसनाथ
में-silent
12. वास- वासुपूज्य
करने वाले- silent
13. विमलजी- विमलनाथ
को दी- silent
फिर-silent
14. अनन्त- अनन्तनाथ
15. धर्म- धर्मनाथ
तक-silent
‪#‎शकुन्तलआ‬- श+कुन्तल+आ
16. श- शांतिनाथ
17. कुन्तल- कुन्धुनाथ
18. आ- अरहनाथ
‪#‎मासी‬- मा+सी
19. मा- मल्लिनाथ
20. सी- मुनि सुब्रत
21. ने- नेमिनाथ
‪#‎आपको‬- आ+पको
22. आ- अरिष्ठनेमी
23. पको- पार्श्वनाथ
24. महावीर स्वामी- महावीर स्वामी
कहा- silent

महत्त्वपूर्ण बिंदु :
जैनधर्म के संस्थापक एवं तीर्थंकर ऋषभदेव थे।
जैनधर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे।
पार्श्वनाथ काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के पुत्र थे।
पार्श्वनाथ को 30 वर्ष की अवस्था में ही वैराग्य उत्पन्न हुआ, जिस कारण गृह त्यागकर वे संन्यासी हो गए।

पार्श्वनाथ के द्वारा दी गयी शिक्षा थी-
1. हिंसा न करना।
2. सदा सत्य बोलना।
3. चोरी न करना
4. सम्पत्ति न रखना।

महावीर स्वामी जैनधर्म के 24वें एवं अंतिम तिर्थंकर हुए।
महावीर स्वामी का जन्म 540 ई.पू. में कुण्डग्राम (वैशाली) में हुआ था।
महावीर स्वामी के पिता सिद्धार्थ ‘ज्ञातृक कुल’ के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छिवी राजा चेटक की बहन थी।
महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोदा एवं पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था।
महावीर स्वामी के बचपन का नाम वर्द्धमान था।
महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की उम्र में माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने बड़े भाई नंदिवर्धन से अनुमति लेकर सन्यास जीवन स्वीकारा था।
महावीर स्वामी को 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद जृम्भिक के समीप ऋजुपालिका नदी ले तट पर साल वृक्ष के निचे तपस्या करते हुए सम्पूर्ण ज्ञान का बोध हुआ। इसी समय से महावीर स्वामी जिन(विजेता), अर्हत(पूज्य) और निर्ग्रन्थ(बंधनहीन) कहलाए।
महावीर स्वामी ने अपना उपदेश प्राकृत (अर्धमागधी) भाषा में दिया।
महावीर स्वामी के प्रथम अनुयायी उनके दामाद प्रियदर्शनी के पति जामिल बने।
प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की पुत्री चम्पा थी।
महावीर स्वामी ने अपने शिष्यो को 11 गणधरों में विभाजित किया था।

आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गन्धर्व था जो महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद भी जिवित रहा और जो जैनधर्म का प्रथम थेरा या मुख्य उपदेशक हुआ।
पहली जैनधर्म की सभा पाटलिपुत्र में 322 ई.पू. में भद्रबाहु और सम्भूति विजय के नेतृत्व में हुई। इसी सभा के बाद जैनधर्म दो भागो में विभाजित हो गया, श्वेताम्बर जो सफ़ेद कपडे पहनते है एवं दिगम्बर जी एकदम नग्नावस्था में रहते है।
भद्रबाहु के शिष्य दिगम्बर एवं स्थूलभद्र के शिष्य श्वेताम्बर कहलाये।
दूसरी जैनधर्म की सभा 512 ई.पू. में वल्लभी गुजरात नामक स्थान पर देवर्धि क्षमाश्रवण की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई।
जैनधर्म के त्रिरत्न है-
1. सम्यक दर्शन
2. सम्यक ज्ञान
3. सम्यक आचरण।
त्रिरत्न के अनुशीलन में निम्न पाँच महाव्रतों का पालन अनिवार्य है-
1. अहिंसा
2. सत्यवचन
3. अस्तेय
4. अपरिग्रह
5. ब्रह्मचर्य।
जैनधर्म में आत्मा की मान्यता है, ईश्वर की मान्यता नही है।
महावीर स्वामी पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करते थे।
जैनधर्म के सप्तभंगी ज्ञान के अन्य नाम स्यादवाद और अनेकान्तवाद है।
जैनधर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारो को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया।
जैनधर्म मानने वाले कुछ राजा थे-
उदायिन, वंदराजा, चन्द्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल, राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष, चंदेल शासक।

मैसूर के गंग वंश के मंत्री चामुण्ड के प्रोत्साहन से कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में 10वीं शताब्दी के मध्य भाग में विशाल बाहुबली की मूर्ति (गौतमेश्वर की मूर्ति) का निर्माण किया गया।
खजुराहो में जैन मंदिरो का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा किया गया।
मौर्योत्तर युग में मथुरा जैनधर्म का प्रसिद्ध केंद्र था तथा मथुरा कला का सम्बन्ध जैनधर्म से है।
जैन तीर्थकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में है।
जैन तीर्थकरों में संस्कृत का सबसे अच्छा विद्वान नयचंद्र था।
72 वर्ष की आयु में महावीर स्वामी की मृत्यु (निर्वाण) 468 ई.पू. में बिहार राज्य के पावापुरी (राजगीर) में हो गई।
मल्लराजा सृस्तिपाल के राजप्रासाद में महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ।