गाँधी को किस रूप में याद करें???
मैं अमर बलिदानी नथूराम गोडसे को हत्यारा नहीं मानता.. मेरे घर में दिवार पर नथूराम गोडसे की तस्वीर ही लगी है। मगर तस्वीर का एक और पहलू है की हर व्यक्ति में अच्छाईयां और बुराइयाँ दोनों होती है। गाँधी भी एक मनुष्य ही थे। देश के लिए संघर्ष के लिए उन्होंने एक मार्ग चुना जो सही या गलत था इस पर विचार अलग हो सकते हैं मगर संघर्ष किया था उन्होंने।। मेरे समझ से गाँधी का सबसे बड़ा योगदान मृत पड़ी भारतीय जनता के अंतरात्मा को जगाना था। वो एक बड़े नेता थे मगर अपने सामने किसी और नेता के कद को बढ़ने न देने और स्वयं ही सर्वोपरी रहने की महत्त्वाकांक्षा में उन्हें सुभाष जैसे देशभक्त को भी कांग्रेस से किनारे कर दिया।। वो एक हिन्दू थे और धार्मिक भी मगर सर्वस्वीकार्य नेता बनने की लालसा में उन्होंने मुश्लिमो का तुष्टिकरण करना शुरू किया और उनके द्वारा किये गए जघन्यतम कृत्य का भी समर्थन किया।। वो खुद को अहिंसावादी कहते थे और कई बार अंग्रेज सरकार इस अस्त्र से पीछे भी हटी मगर उनकी राजनितिक हिंसा का शिकार भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी हुए।। वो एक संपन्न घर से थे अंग्रेजी तरीके से जीवन यापन कर सकते थे मगर बिदेशी वस्त्रों की होली जलाने के क्रन्तिकारी विचार का प्रसार उन्होंने ही किया। वो अंग्रेजो के अतिथि बन के भारत की बात रखने प्रतिनिधि के रूप में लन्दन जाते थे मगर उन्ही अंग्रेजो के नमक के कानून के विरोध में दांडी मार्च भी निकालते थे। एक तरफ उनके आदर्श भगत सिंह के जीवन से बड़े हो जाते थे तो दूसरी और नेहरु के सामने वो पुत्रमोह जैसे व्यवहार में फस जाते थे।खुद को ब्रम्हचारी बताने वाले गाँधी 18-20 साल की उम्र की स्त्रियों के साथ नग्न होके सोना,उन्हें अनावृत करके देखना,उनके साथ नग्न होकर स्नान करना अपने ब्रह्मचर्य की कसौटी और प्रयोग मानते थे।। वो सत्य से साक्षात्कार लिखते समय वेश्या के पास जाने तक की बात भी नहीं छिपाते मगर मैमूना बेगम और फिरोज खान को इंदिरा गाँधी और फिरोज गाँधी बनाने की विवशता पर प्रकाश डालते हुए उनका सत्य तिमिर का वरण करने लगता था।विभाजित भारत ने उन्हें राष्ट्रपिता माना मगर 55 करोड़ का अनशन पाकिस्तान के लिए उनहोने किया। वो भारत की आजादी के एक सिपाही थे मगर वो भारत के विभाजन के एक मुख्य अभियुक्त भी हैं। ऊन्होने हिन्दू धर्म को सर्वोच्च बताया मगर लाखो हिन्दुओं के खून के छींटे उनके द्वारा काती गयी खद्दर के ऊपर अमिट कटु स्मृति के रूप में स्थायी रूप से विराजमान हैं।
कुल मिलाकर मैं गाँधी जी को एक आजादी का प्रमुख सिपाही मानता हूँ मगर अंतिम सोपान में अपनी राजनितिक महत्त्वाकांक्षाओं के बलिवेदी पर एक राष्ट्र के दो टुकड़े करने और लाखों हिन्दुओं की हत्याओं की उत्तरदायित्व भी उनके खाते में लिखा जायेगा।
आप उनको किस रूप में याद करना चाहेंगे ये आप का निर्णय है...
मैं अमर बलिदानी नथूराम गोडसे को हत्यारा नहीं मानता.. मेरे घर में दिवार पर नथूराम गोडसे की तस्वीर ही लगी है। मगर तस्वीर का एक और पहलू है की हर व्यक्ति में अच्छाईयां और बुराइयाँ दोनों होती है। गाँधी भी एक मनुष्य ही थे। देश के लिए संघर्ष के लिए उन्होंने एक मार्ग चुना जो सही या गलत था इस पर विचार अलग हो सकते हैं मगर संघर्ष किया था उन्होंने।। मेरे समझ से गाँधी का सबसे बड़ा योगदान मृत पड़ी भारतीय जनता के अंतरात्मा को जगाना था। वो एक बड़े नेता थे मगर अपने सामने किसी और नेता के कद को बढ़ने न देने और स्वयं ही सर्वोपरी रहने की महत्त्वाकांक्षा में उन्हें सुभाष जैसे देशभक्त को भी कांग्रेस से किनारे कर दिया।। वो एक हिन्दू थे और धार्मिक भी मगर सर्वस्वीकार्य नेता बनने की लालसा में उन्होंने मुश्लिमो का तुष्टिकरण करना शुरू किया और उनके द्वारा किये गए जघन्यतम कृत्य का भी समर्थन किया।। वो खुद को अहिंसावादी कहते थे और कई बार अंग्रेज सरकार इस अस्त्र से पीछे भी हटी मगर उनकी राजनितिक हिंसा का शिकार भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी हुए।। वो एक संपन्न घर से थे अंग्रेजी तरीके से जीवन यापन कर सकते थे मगर बिदेशी वस्त्रों की होली जलाने के क्रन्तिकारी विचार का प्रसार उन्होंने ही किया। वो अंग्रेजो के अतिथि बन के भारत की बात रखने प्रतिनिधि के रूप में लन्दन जाते थे मगर उन्ही अंग्रेजो के नमक के कानून के विरोध में दांडी मार्च भी निकालते थे। एक तरफ उनके आदर्श भगत सिंह के जीवन से बड़े हो जाते थे तो दूसरी और नेहरु के सामने वो पुत्रमोह जैसे व्यवहार में फस जाते थे।खुद को ब्रम्हचारी बताने वाले गाँधी 18-20 साल की उम्र की स्त्रियों के साथ नग्न होके सोना,उन्हें अनावृत करके देखना,उनके साथ नग्न होकर स्नान करना अपने ब्रह्मचर्य की कसौटी और प्रयोग मानते थे।। वो सत्य से साक्षात्कार लिखते समय वेश्या के पास जाने तक की बात भी नहीं छिपाते मगर मैमूना बेगम और फिरोज खान को इंदिरा गाँधी और फिरोज गाँधी बनाने की विवशता पर प्रकाश डालते हुए उनका सत्य तिमिर का वरण करने लगता था।विभाजित भारत ने उन्हें राष्ट्रपिता माना मगर 55 करोड़ का अनशन पाकिस्तान के लिए उनहोने किया। वो भारत की आजादी के एक सिपाही थे मगर वो भारत के विभाजन के एक मुख्य अभियुक्त भी हैं। ऊन्होने हिन्दू धर्म को सर्वोच्च बताया मगर लाखो हिन्दुओं के खून के छींटे उनके द्वारा काती गयी खद्दर के ऊपर अमिट कटु स्मृति के रूप में स्थायी रूप से विराजमान हैं।
कुल मिलाकर मैं गाँधी जी को एक आजादी का प्रमुख सिपाही मानता हूँ मगर अंतिम सोपान में अपनी राजनितिक महत्त्वाकांक्षाओं के बलिवेदी पर एक राष्ट्र के दो टुकड़े करने और लाखों हिन्दुओं की हत्याओं की उत्तरदायित्व भी उनके खाते में लिखा जायेगा।
आप उनको किस रूप में याद करना चाहेंगे ये आप का निर्णय है...