●● चक्रवात ( CYCLONE )
●● वाताग्र ( Fronts )
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→ वाताग्र ( Fronts ) क्या होता है ??
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जब दो भिन्न प्रकार की वायुराशियां ( Air masses) , विपरीत दिशाओं से आकर आमने - सामने मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं।
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वायुराशियों के गतिशील होने के कारण वाताग्र प्रायः टेढ़े - मेढ़े तथा लहरदार होते हैं। सामान्यतः वाताग्र धरातलीय सतह से कुछ कोण पर झुका होता है। यह झुकाव ( ढाल )पृथ्वी के घूर्णन पर निर्भर करता है। यदि हम भूमध्यरेखा से ध्रुवों की तरफ जाते हैं तो यह ढाल बढ़ता जाता है।
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( ध्यान दें- वाताग्र का निर्माण वायुराशियों ( Air masses) के मिलने से होता है , वायु ( Air ) के मिलने से नहीं। वायु और वायुराशि में अंतर मेरी पिछली पोस्ट में पढ़ सकते हैं। )
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→ वाताग्र उत्पत्ति के लिये आवश्यक दशाएं :-
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1. वाताग्र के निर्माण के लिये जो दो भिन्न वायुराशियां मिलती हैं वो विपरीत स्वाभाव की होनी चाहिए।
मतलब एक वायुराशि गर्म होनी चाहिए और दूसरी ठंडी वायुराशि होनी चाहिए।
mT और cT गर्म वायुराशियां होती हैं। यदि ये आपस में मिलेंगी तो वाताग्र नहीं बनेगा।
mP , cP और cA ये सभी ठण्डी वायुराशियां हैं। यदि ये आपस में मिलेंगी तो वाताग्र नहीं बनेगा।
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वाताग्र के निर्माण के लिये अनिवार्य है कि एक वायुराशि mT और cT गर्म वायुराशियों में से हो और दूसरी वायुराशि mP , cP और cA ठण्डी वायुराशियों में से हो।
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2. वाताग्र के निर्माण के लिये दो विपरीत स्वाभाव वाली वायुराशियों का अभिसरण ( Convergence) होना अति आवश्यक है।
मतलब कि दो विपरीत स्वाभाव वाली वायुराशियाँ विपरीत दिशाओं से आकर आमने सामने से मिलती हों , तभी वाताग्र बनेगा। यदि वायुराशियों का अपसरण ( Divergence) होगा तो वायुराशियां विभिन्न दिशाओं की ओर चलने लगती हैं और वाताग्र की उत्पत्ति नहीं होती।
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→ वाताग्रों के बनने की प्रक्रिया को वाताग्र - जनन ( Frontogenesis ) कहते हैं।
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→ वाताग्रों के क्षय या विघटन की प्रक्रिया को वाताग्र क्षय ( Frontolysis ) कहते हैं।
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●● वाताग्रों का वर्गीकरण ( Classification of Fronts )
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वाताग्र चार प्रकार के होते हैं :-
1. अचर या स्थायी वाताग्र ( Stationary Front )
2. शीत वाताग्र ( Cold Front )
3. उष्ण वाताग्र ( Warm Front )
4. अधिविष्ट वाताग्र ( Occluded Front )
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1. अचर या स्थायी वाताग्र ( Stationary Front )
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ऐसे वाताग्र जब कोई भी वायुराशि ऊपर नहीं उठती , वायुराशियां एक दूसरे के समानांतर चलती रहती हैं और वाताग्र स्थिर रहता है तो ऐसे वाताग्र को अचर या स्थायी वाताग्र ( Stationary Front ) कहते हैं।
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2. शीत वाताग्र ( Cold Front )
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जब शीतल एवम् भारी वायुराशि आक्रामक रूप में उष्ण वायुराशियों को ऊपर धकेलती है , तो इस संपर्क क्षेत्र को शीत वाताग्र ( Cold Front ) कहते हैं।
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3. उष्ण वाताग्र ( Warm Front )
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यदि गर्म वायुराशियां आक्रामक रूप में ठंडी वायुराशियों के ऊपर चढ़ती हैं तो इस संपर्क क्षेत्र को उष्ण वाताग्र ( Warm Front ) कहते हैं।
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4. अधिविष्ट वाताग्र ( Occluded Front )
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यदि एक वायुराशि पूर्णतः धरातल के ऊपर उठ जाये तो ऐसे वाताग्र को अधिविष्ट वाताग्र ( Occluded Front ) कहते हैं। सामान्यतः धरातल के साथ उष्ण वायुराशि का संपर्क समाप्त हो जाता है तो अधिविष्ट वाताग्र का निर्माण होता है।
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→ वाताग्र मध्य अक्षांशों में ही निर्मित होते हैं और तीव्र वायुदाब व तापमान प्रवणता इनकी विशेषता होती है। ये तापमान में अचानक बदलाव लाते हैं तथा इसी कारण वायु ऊपर उठती है , बादल बनते हैं तथा वर्षा होती है।
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→ वाताग्रों को चक्रवातों तथा प्रतिचक्रवातों के पालने कहा जाता है ।
Fronts are cradles of cyclones and anticyclones .
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