महासागरीय धाराये (ocean currents)
►महासागर के जल के सतत एवं निर्देष्ट दिशा वाले प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं।
► समुद्री धाराएं उष्ण या गर्म (warm) अथवा शीतल या ठंडी (cold) दो प्रकार की होती हैं। उष्ण धारा वह होती है जिसके जल का तापमान उसके किनारे के सागरीय जल के तापमान से अधिक होता है। इसके विपरीत शीतल धारा में जल का तापमान किनारे के सागरीय जल के तापमान से कम होता है।
उत्पत्ति--
►महासागरीय धारा बनने के मुख्यत: तीन कारण होते हैं -
1-प्रथम तो जल में लवण की मात्रा एक स्थान की अपेक्षा दूसरे स्थान पर बदलती है, इसलिए सागरीय जल के घनत्व में भी स्थान के साथ-साथ परिवर्तन आता है। द्रव्यों की प्राकृतिक प्रवृत्ति जिसमें वे अधिक घनत्व वाले क्षेत्र की ओर अग्रसर होते हैं, के कारण धाराएं बनती हैं।
2-दूसरे कारण में सूर्य की किरणें जल की सतह पर एक समान नहीं पड़तीं। इस कारण जल के तापमान में असमानता आ जाती है। इसके कारण संवहन धारा (कन्वेक्शन करंट) पैदा होते हैं।
3-तीसरा कारण सागर की सतह के ऊपर बहने वाली तेज हवाएं होती हैं। उनमें भी जल में तरंगें पैदा करने की क्षमता होती है। ये तरंगें पृथ्वी की परिक्रमा से भी बनती हैं। इस घूर्णन के कारण पृथ्वी के उत्तरी हिस्से में घड़ी की दिशा में धाराएं बनती हैं।
प्रमुख धाराएं--
►अटलांटिक महासागर
खाड़ी के उत्तर स्ट्रीम ---- गर्म
उत्तरी अटलांटिक धारा ---- गर्म
ब्राजील धारा -- --गर्म
बेंगुला धारा-- गर्म व ठंडी
कैनरी धारा---- ठंडी
लेब्राडोर धारा----ठंडी
►प्रशांत महासागर
अलास्का की धारा----गर्म
क्यूरोशियो (जापान) धारा----गर्म
उत्तरी प्रशांत महासागर धारा---- गर्म
पूर्व ऑस्ट्रेलियाई धारा ---- गर्म
इक्वेटोरियल धारा ---- गर्म
हम्बोल्ट (पेरू) धारा ----ठंडी
पश्चिम पवन धारा --- ठंडी
कैलीफोर्निया की धारा ---- ठंडी
ऒयाशिओ (कामचटका) धारा-- --ठंडी
► हिंद महासागर
ऑस्ट्रेलियाई धारा ----ठंडी
अगुलहास धारा ---- गर्म
►महासागर के जल के सतत एवं निर्देष्ट दिशा वाले प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं।
► समुद्री धाराएं उष्ण या गर्म (warm) अथवा शीतल या ठंडी (cold) दो प्रकार की होती हैं। उष्ण धारा वह होती है जिसके जल का तापमान उसके किनारे के सागरीय जल के तापमान से अधिक होता है। इसके विपरीत शीतल धारा में जल का तापमान किनारे के सागरीय जल के तापमान से कम होता है।
उत्पत्ति--
►महासागरीय धारा बनने के मुख्यत: तीन कारण होते हैं -
1-प्रथम तो जल में लवण की मात्रा एक स्थान की अपेक्षा दूसरे स्थान पर बदलती है, इसलिए सागरीय जल के घनत्व में भी स्थान के साथ-साथ परिवर्तन आता है। द्रव्यों की प्राकृतिक प्रवृत्ति जिसमें वे अधिक घनत्व वाले क्षेत्र की ओर अग्रसर होते हैं, के कारण धाराएं बनती हैं।
2-दूसरे कारण में सूर्य की किरणें जल की सतह पर एक समान नहीं पड़तीं। इस कारण जल के तापमान में असमानता आ जाती है। इसके कारण संवहन धारा (कन्वेक्शन करंट) पैदा होते हैं।
3-तीसरा कारण सागर की सतह के ऊपर बहने वाली तेज हवाएं होती हैं। उनमें भी जल में तरंगें पैदा करने की क्षमता होती है। ये तरंगें पृथ्वी की परिक्रमा से भी बनती हैं। इस घूर्णन के कारण पृथ्वी के उत्तरी हिस्से में घड़ी की दिशा में धाराएं बनती हैं।
प्रमुख धाराएं--
►अटलांटिक महासागर
खाड़ी के उत्तर स्ट्रीम ---- गर्म
उत्तरी अटलांटिक धारा ---- गर्म
ब्राजील धारा -- --गर्म
बेंगुला धारा-- गर्म व ठंडी
कैनरी धारा---- ठंडी
लेब्राडोर धारा----ठंडी
►प्रशांत महासागर
अलास्का की धारा----गर्म
क्यूरोशियो (जापान) धारा----गर्म
उत्तरी प्रशांत महासागर धारा---- गर्म
पूर्व ऑस्ट्रेलियाई धारा ---- गर्म
इक्वेटोरियल धारा ---- गर्म
हम्बोल्ट (पेरू) धारा ----ठंडी
पश्चिम पवन धारा --- ठंडी
कैलीफोर्निया की धारा ---- ठंडी
ऒयाशिओ (कामचटका) धारा-- --ठंडी
► हिंद महासागर
ऑस्ट्रेलियाई धारा ----ठंडी
अगुलहास धारा ---- गर्म