दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश, चोल वंश
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1.9 वीं शताब्दी में चोल वंश पल्लवों के ध्वंसावशेषों पर स्थापित हुआ ।
2.चोल वंश के संस्थापक विजयालय (850-87ई0) थे ।जिसकी राजधानी तांजाय (तंजौर या तंजावूर) था ।
3.विजयालय ने नरकेसरी की उपाधि धारण की।
4.चोलों का स्वतंत्र राज्य आदित्य प्रथम ने स्थापित किया ।
5.पल्लवों पर विजय के उपरान्त आदित्य प्रथम ने कोदण्डराम की उपाधि धारण की ।
6.चोल वंश के प्रमुख राजा थे---परान्तक प्रथम, राजराज प्रथम, राजेन्द्र प्रथम, राजेन्द्र द्वितीय एवम् कुलोतुंग।
7.राजराज प्रथम ने श्रीलंका पर आक्रमण किया । वहाँ के राजा महिम -5 (पंचम) को भगाकर श्रीलंका के
दक्षिण जिला रोहन में शरण लेनी पड़ी ।
8.राजराज प्रथम शैव धर्म का अनुयायी था। इसने तंजौर में राजराजेश्वर का शिव मंदिर बनाया ।
9.चोल सम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार राजेन्द्र प्रथम के शासनकाल में हुआ ।
10.बंगाल के पाल शासक महिपाल को पराजित करने के बाद राजेन्द्र प्रथम ने गंगैकोडचोल की उपाधि धारण
की ।
11.गजनी का सुल्तान महमूद राजेन्द्र प्रथम का समकालीन था ।
12.राजेन्द्र द्वितीय ने प्रकेसरी की एवम् वीर राजेन्द्र ने राजकेसरी की उपाधि धारण की ।
13.चोल वंश का अंतिम राजा राजेन्द्र तृतीय था ।
14.सम्पूर्ण चोल सम्राज्य 6 प्रांतो में विभक्त था ।
15.प्रांत को मंडलम् कहा जाता था ।
16.मंडलम् कोट्टम में ,कोट्टम नाडू में एवम् नाडू कई कुर्रमों में विभक्त था ।
17.स्थानीय स्वशासन चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता थी ।
18.सभा की बैठक गाँव में मंदिर के निकट वृक्ष के नीचे या तालाब के किनारे होती थी ।
19.चोल काल में भूमिकर उपज का 1/3(एक तिहाई) भाग हुआ करता था ।
20.ब्राह्मणों को दी गई करमुक्त भूमि को चतुर्वेदी मंगलम् एवम् दान में दी गई भूमि ब्रह्मदेय कहलाती थी ।
21.चोल सेना का सबसे संगठित अंग पदाति सेना था ।
22.कंबन ,औट्टक्कुट्टन और पुग्लेंदि को तमिल साहित्य का त्रिरत्न कहा जाता है ।
23.पंप ,पोन्न एवम् रन्न कन्नड़ साहित्य के त्रिरत्न माने जाते है ।
24.पर्सी ब्राऊन ने तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर के विमान को भारतीय वस्तुकला का निकष माना है ।
25.चोलकालीन नटराज प्रतिमा को चोल कला का सांस्कृतिक सार या निचोड़ कहा जाता है ।
26.चोल कांस्य प्रतिमाएँ संसार की सबसे उत्कृष्ट कांस्य प्रतिमाओं में गिनी जाती है ।
27.चोल काल का सबसे महत्वपूर्ण बन्दरगाह कावेरीपट्टनम् था ।
28.चोल काल में आम वस्तुओं के आदान-प्रदान का आधार धान था ।
29.विष्णु के उपासक अलवार एवम् शिव के उपासक नयनार संत कहलाते थे ।