Saturday 23 May 2015

Know about "Quran" in Hindi

क़ुरआन :-
क़ुरान (अरबी : القرآن अल्-क़ुर्-आन्) इस्लाम की पवित्रतम पुस्तक है और इस्लाम की नींव है। इसे परमेश्वर (अल्लाह) ने देवदूत (फ़रिश्ते) जिब्राएल द्वारा हज़रत मुहम्मद को सुनाया था। मुसलमानों का मानना हैं कि क़ुरान ही अल्लाह की भेजी अन्तिम और सर्वोच्च पुस्तक है।
इस्लाम की मान्यताओं के अनुसार क़ुरान का अल्लाह के दूत जिब्रील (जिसे ईसाइयत में गैब्रियल कहते हैं) द्वारा मुहम्मद साहब को सन् ६१० से सन् ६३२ में उनकी मृत्यु तक खुलासा किया गया था। हालाँकि आरंभ में इसका प्रसार मौखिक रूप से हुआ पर पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के बाद सन् ६३३ में इसे पहली बार लिखा गया था और सन् ६५३ में इसे मानकीकृत कर इसकी प्रतियां इस्लामी साम्राज्य में वितरित की गईं थी। मुसलमानों का मानना है कि ईश्वर द्वारा भेजे गए पवित्र संदेशों के सबसे आख़िरी संदेश कुरान में लिखे गए हैं। इन संदेशों का शुभारम्भ आदम से हुआ था। आदम इस्लामी (और यहूदी तथा ईसाई) मान्यताओं में सबसे पहला नबी (पैगम्बर या पयम्बर) था और इसकी तुलना हिन्दू धर्म के मनु से एक सीमा तक की जा सकती है। जिस प्रकार से हिन्दू धर्म में मनु की संतानों को मानव कहा गया है वैसे ही इस्लाम में आदम की संतानों को आदम या आदमी कहा जाता है। आदम को ईसाईयत में एडम कहते हैं।
एकेश्वरवाद, धार्मिक आदेश, स्वर्ग, नरक, धैर्य, धर्म परायणता (तक्वा) के विषय ऐसे हैं जो बारम्बार दोहराए गए। क़ुरआन ने अपने समय में एक सीधे साधे, नेक व्यापारी व्यक्तियों को, जो अपने परिवार में एक भरपूर जीवन गुज़ार रहा था, विश्व की दो महान शक्तियों (रोमन तथा ईरानी) के समक्ष खड़ा कर दिया। केवल यही नहीं उसने रेगिस्तान के अनपढ़ लोगों को ऐसा सभ्य बना दिया कि पूरे विश्व पर इस सभ्यता की छाप से सैकड़ों वर्षों बाद भी इसके चिह्न मिलते हैं। क़ुरआन ने युध्द, शांति, राज्य संचालन इबादत, परिवार के वे आदर्श प्रस्तुत किए जिसका मानव समाज में आज प्रभाव है। मुसलमानों के अनुसार कुरआन में दिए गए ज्ञान से ये साबित होता है कि मुहम्मद साहब एक नबी थे।
क़ुरान कथ्य:-
क़ुरान में कुल ११४ अध्याय हैं जिन्हें सूरा कहते हैं। बहुवचन में इन्हें सूरत कहते हैं। यानि १५वें अध्याय को सूरत १५ कहेंगे। हर अध्याय में कुछ श्लोक हैं जिन्हें आयत कहते हैं। क़ुरआन की ६,६६६ आयतों में से (कुछ के अनुसार ६,२३८) अभी तक १,००० आयतें वैज्ञानिक तथ्यों पर बहस करती हैं।
ऐतिहासिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि इस धरती पर उपस्थित हर क़ुरान की प्रति वही मूल प्रति का प्रतिरूप है जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) पर अवतरित हुई थी। जिसे इस पर विश्वास न हो वह कभी भी इस की जांच कर सकता है। धरती के किसी भी भू भाग से क़ुरान लीजिए और उसे प्राचीन युग की उन प्रतियों से मिला कर जांच कर लीजिए जो अब तक सुरक्षित रखी हैं। तृतीय ख़लीफ़ा हज़रत उस्मान (रज़ि.) ने अपने सत्ता समय में हज़रत सि¬द्दीक़े अकबर (रज़ि.) द्वारा संकलित क़ुरआन की ९ प्रतियां तैयार करके कई देशों में भेजी थी उनमें से दो क़ुरान की प्रतियां अभी भी पूर्ण सुरक्षित हैं। एक ताशक़ंद में और दूसरी तुर्की में उपस्थित है। यह १५०० वर्ष पुरानी हैं, इसकी भी जांच वैज्ञानिक रूप से काराई जा सकती है। फिर यह भी एतिहासिक रूप से प्रमाणित है कि इस पुस्तक में एक मात्रा का भी अंतर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के समय से अब तक नहीं आया है।