भौतिक राशियाँ, मानक एवं मात्रक
भौतिक संबंधी नियमों को- समय, बल, ताप, घनत्व जैसी तथा अन्य अनेक भौतिक राशियों के संबंध सूत्रों के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। सभी भौतिक राशियों को सामान्यत: मूल (लंबाई, द्रव्यमान व समय) एवं व्युत्पन्न (गति, क्षेत्रफल, घनत्व इत्यादि) राशियों में बाँटा जा सकता है।
भौतिक राशियों को को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है:
(1) अदिश (Scalar) (इनमें केवल परिमाण होता है) राशियाँ
(2) सदिश (vector) (इनमें परिमाण व दिशा दोनों होते हैं) राशियाँ।
लंबाई का मात्रक
भार व माप का सामान्य सम्मेलन (General Conferences of Weight & Measures) ने 1893 में मीटर को पुन: परिभाषित किया, जिसके अनुसार यह प्रकाश द्वारा 1/299792458 सेकेंड में तय की गई दूरी है।
1. किमी = 1000 मी., 1 सेमी. = 10-2 मी.,
1 मिमी. = 10-3 मी.
1 प्रकाश वर्ष = 9.46&1015 मी.
द्रव्यमान का मात्रक
मानक किग्रा. प्लेटिनम-इरीडियम मिश्रधातु के विशेष ठोस बेलन का द्रव्यमान है, यह बेलन सेवेर्स, फ्रांस में रखा है।
1 टन = 103 किग्रा. 1 ग्रा. = 10-3 किग्रा.,
1 मिमी. = 10-6 किग्रा.
समय का मात्रक
समय का मात्रक सेकेंड है। सेकेंड को 1967 में गैसीय सीजियम परमाणुओं में ऊर्जा परिवर्तन पर आधारित परमाणु-घड़ी के अनुसार पुन: परिभाषित किया गया।
बल विज्ञान (Mechanics)
पिंडों की गति का अध्ययन ही बल-विज्ञान है।
गति
यह यांत्रिक गति दो प्रकार की होती है- स्थानांतरण (Linear) एवं घूर्णन (Rotational) ।
चाल
किसी गतिशील वस्तु की चाल, वस्तु द्वारा दूरी तय करने की दर होती है-
वेग
किसी वस्तु द्वारा इकाई समय में निर्दिष्टï दिशा में तय की गई दूरी को वेग कहते हैं।
गुरुत्वीय त्वरण
गुरुत्व के कारण होने वाला त्वरण सबसे सामान्य है। पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वीय त्वरण का मान लगभग 9.8 मी./से.2 होता है।
बल
बल किसी वस्तु की विरामावस्था या एक समान गति से सीधी रेखा में चलने की अवस्था में परिवर्तन करता है।
गुरुत्वाकर्षण बल- जो बल हमें पृथ्वी की ओर खींचे रखता है, इस बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते है। किन्हीं दो वस्तुओं के मध्य परस्पर गुरुत्वाकर्षण कार्यरत होता है।
न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम- इसके अनुसार, ब्रह्मïांड का प्रत्येक कण अन्य कणों में प्रत्येक को अपनी ओर एक बल से आकर्षित करता है, इस गुरुत्वाकर्षण बल का समीकरण सूत्र,
F= G[(m1m2)/r2]
जहाँ कणों के मध्य दूरी ह्म् तथा कणों के द्रव्यमान द्व१ व द्व२ हैं, त्र सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक है जिसका मान ६.६६&१०-११ है।
अभिकेन्द्र बल- किसी वस्तु को वृत्तीय गति में बनाए रखने के लिए उस पर एक बल वृत्त के केंद्र की ओर कार्य करता है। यह अभिकेंद्र बल कहलाता है। और इसी बल की वजह से वस्तु की गति की दिशा में निरंतर परिवर्तन होने से वह वृत्तीय गति में आती है।
अपकेंद्री बल- वृत्तीय गति में घूमती वस्तु पर कल्पित बल कार्य करने लगता है, जो अपकेन्द्री बल कहलाता है।
भार
किसी वस्तु का भार वह बल है जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण उस पर लगता है तथा पृथ्वी के केंद्र की ओर कार्यरत होता है।। जबकि द्रव्यमान वस्तु में निहित पदार्थ की मात्रा का माप है। जब हम कहते हैं कि एक व्यक्ति का वजन 60 किग्रा. है तो वास्तव में हम उसका द्रव्यमान बताते हैं न कि भार।
घर्षण
घर्षण वह बल है जो परस्पर स्पर्श करती दो सतहों के मध्य सापेक्ष गति के विपरीत कार्य करता है।
न्यूटन के गति सम्बंधी नियम
न्यूटन के गति संबंधी तीन नियमों में गति के मूलभूत सिद्धांत निहित हैं।
प्रथम नियम- प्रत्येक वस्तु अपनी विरामावस्था या समरूप गति में जब तक बनी रहती है जब तक उस पर कोई कार्य न करे।
चलती बस से नीचे उतरने पर आप को रुकने के पूर्व बस की दिशा में कुछ दूर तक दौडऩा पड़ता है। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप आगे की ओर गिर सकते हैं, क्योंकि सड़क के स्पर्श में आते ही आपके पैर स्थिर होना चाहते हैं और शरीर का ऊपरी भाग गति में बना रहना चाहता है।
द्वितीय नियम- इस नियम के अनुसार, ''किसी वस्तु के संवेग की परिवर्तन की दर लगाए गए बल के समानुपाती होती है और बल की दिशा में कार्य करती है।"
F=ma
तृतीय नियम- इस नियम के अनुसार, ''प्रत्येक बल के लिए बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।"
यदि कोई व्यक्ति दीवार पर घूंसा मारे तो दीवार पर लगा बल मु पर लगे बल के बराबर और विपरीत होता है।
कार्य, शक्ति एवं ऊर्जा
कार्य- साधारण बोलचाल में कार्य का अर्थ है कि शारीरिक अथवा मानसिक क्रिया। जब बल लगने पर वस्तु में गति (विस्थापन) हो तो बल द्वारा कार्य किया जाता है और बल व बल की दिशा में विस्थापन का गुणनफल कार्य को व्यक्त करता है।
कार्य = बल & बल की दिशा में चली गई दूरी।
W = F x d (कार्य का मात्रक जूल है)
शक्ति- कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं,
P =w/t (शक्ति का मात्रक वाट (w) है
ऊर्जा- कार्य करने की कुल क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। ऊर्जा का मात्रक जूल ही है। यांत्रिक ऊर्जा दो प्रकार की होती है- गतिज (्यद्बठ्ठद्गह्लद्बष्) और स्थितिज (क्कशह्लद्गठ्ठह्लद्बड्डद्य) ऊर्जा।
गतिज ऊर्जा- वस्तु की गति से उत्पन्न ऊर्जा, गतिज ऊर्जा कहलाती है तथा इसका समीकरण है -
गतिज ऊर्जा (KE) = 1/2 mv2
जहाँ वस्तु का द्रव्यमान द्व तथा उसका वेग 1 है। गतिमान बंदूक की गोली अथवा गतिमान पत्थर के टुकड़े में गतिज ऊर्जा होती है।
स्थितिज ऊर्जा- किसी वस्तु की अपनी स्थिति (बल क्षेत्र में) के कारण जो ऊर्जा होती है वह स्थितिज ऊर्जा कहलाती है। इसका समीकरण सूत्र है-
PE = mgh (जहाँ m वस्तु का द्रव्यमान, g गुरुत्वीय त्वरण तथा h पृथ्वी की सतह से वस्तु की ऊँचाई है )।
स्थितिज ऊर्जा के अनेक उदाहरण हैं- पृथ्वी की सतह से कुछ ऊँचाई पर पकड़कर रखा गया पत्थर।
दाब
प्रति इकाई क्षेत्रफल पर लगे बल को दाब कहते हैं।
दाब का मात्रक न्यूटन प्रति वर्ग मी. अथवा पास्कल है।
वायुमंडलीय दाब- पृथ्वी के चारों ओर काफी ऊँचाई तक वायु है जिसे वायुमंडल कहते हैं। वायु का भार होता है अत: यह पृथ्वी की सतह पर ही नहीं, बल्कि पृथ्वी पर स्थित सभी वस्तुओं पर दाब डालती है। वास्तव में, मानव एवं समुद्र की वायुमंडलीय दाब को वायुदाबमापी (barometer) द्वारा मापा जाता है।
ऊर्जा संरक्षण (Energy Conversation)
ऊर्जा को न तो समाप्त तथा न ही उत्पन्न किया जा सकता है, बल्कि इसे एक से दूसरे रूप में रूपांतरित किया जा सकता है और इस प्रकार कुल ऊर्जा एक समान संरक्षित बनी रहती है।
गुरुत्व केंद्र- किसी वस्तु का गुरुत्व केंद्र वह बिंदु होता है जिस पर वस्तु का संपूर्ण भार कार्य करता है अथवा केंद्रित होता है। गुरुत्व केंद्र वस्तु के वास्तविक पदार्थ के बाहर भी स्थित हो सकता है।
किसी वस्तु की स्थिरता उसके गुरुत्व केंद्र की स्थिति पर निर्भर करती है। नाव में बैठे यात्रियों को नदी में तैरती नाव में खड़े नहीं होने दिया जाता है, क्योंकि नाव का गुरुत्व केंद्र यात्रियों सहित नाव के आधार पर निकट बना रहता है और नाव स्थिर रहती है।
मशीन - मशीन वह युक्ति (साधन) है जिसकी सहायता से किसी सुविधाजनक बिंदु पर कम बल लगाकर अन्य बिंदु पर लगे भारी बल (भार) को हटाया (संतुलित) जा सकता है।
कार्य निवेश (work input) = कार्य बहिर्वेश (work output)
मशीन की दक्षता- मशीन द्वारा किए गए लाभदायक कार्य और निविष्टï कार्य (input work) के अनुपात को मशीन की दक्षता कहते हैं। किसी भी मशीन की क्षमता हरदम 100 से कम ही होती है।
घनत्व- किसी पदार्थ के इकाई आयतन के द्रव्यमान को घनत्व कहते हैं।
जल का घनत्व 1000 किग्रा./मी.3 है।
आपेक्षित घनत्व
किसी पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व (RD) पदार्थ के घनत्व व जल के घनत्व के अनुपात द्वारा व्यक्त किया जाता है। इसका कोई मात्रक नहीं होता।
उत्प्लावन (Upthrust)
यदि लकड़ी के एक गुटके को जल की सतह से नीचे पकड़कर छोड़ दिया जाता है तो हम देखते हैं कि वह तुरंत ही ऊपर सतह पर आ जाता है। इसका कारण यह है कि गुटके पर ऊपर की ओर जल के कारण एक बल कार्य करता है जिसे उत्प्लावन बल कहते हैं। द्रव की तरह गैसें भी वस्तु पर उत्प्लावन लगाती हैं।
आर्किमिडीज़ का सिद्धांत-इस सिद्धांत के अनुसार, जब कोई वस्तु आंशिक रूप से किसी द्रव में डूबी हो तो उस पर एक उत्प्लावन कार्य करता है जो वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होता है।
ऊष्मा
आंतरिक ऊर्जा- पदार्थ के अणु निरंतर गति में होते हैं और इन अणुओं की कुल गतिज व स्थितिज ऊर्जा को पदार्थ की 'आन्तरिक ऊर्जा' कहते हैं। आंतरिक ऊर्जा जितनी अधिक होगी पदार्थ उतना ही अधिक गर्म होगा।
ताप व ऊष्मा- किसी वस्तु का ताप वह मात्रा है जिससे हमें यह ज्ञात होता है कि एक मानक वस्तु की अपेक्षा वह वस्तु कितनी गर्म अथवा ठंडी है। ताप को तापमापी (Thermometer) से मापा जाता है। तापमापी के विïिवध प्रकार हैं, किंतु सामान्य प्रचलन में काँच की नली में भरे पारे के बने तापमापी में पारे के प्रसार व संकुचन से ताप का मापन किया जाता है।
तापमापी के पैमाने का निर्धारण उसका शून्यांक शुद्ध बर्फ के गलनांक को शून्य मानकर तथा पारे के 760 मिमी के मानक वायुमंडलीय दाब पर उबलते जल से निकलती भाप के ताप को 100 का अंशाकार मानकर, करते हैं। शून्य व 100 बराबर अंशों में विभक्त कर प्रत्येक अंश को एक अंश (डिग्री) मान लेते हैं। इस प्रकार प्राप्त पैमाना सैल्सियस पैमाना कहलाता है तथा इस पर ताप को अंश (oC) से व्यक्त करते हैं।
फारेनहाइट पैमाने में 0oC को 32o तथा 100oC में 212o अंशांकित किया जाता है। फारेनहाइट से सेल्सियस में ताप गणना के लिए संबंध सूत्र निम्न हैं-
tc = 5/9(tF - 32)
tc व tF क्रमश: सेल्सियस व फारेनहाइट पैमाने पर संगत ताप हैं।
ऊष्मीय प्रसार- ठोसों, द्रवों व गैसों को गर्म करने पर सामान्यतया उनमें प्रसार और ठंडा करने पर संकुचन होता है।
प्रसारणीयता (Expansivity) - किसी 1 मी. लम्बी लोहे की छड़ को 1oC गर्म करें तो उसकी लंबाई में 0.000012 मी. की वृद्धि होगी। इसलिए हम कह सकते हैं कि लोहे की रेखीय-प्रसरणीयता 0.000012/oC है।
जल का अंसगत प्रसार (anomalous)
जल में असंगत रूप से प्रसार होता है। जल के असंगत प्रसार की वजह से ही जल में रहने वाले जीव-जंतु बहुत ठंडे मौसम में जीवित रह जाते हैं।
ऊष्मा-संचरण
ऊष्मा का संचरण निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है-
चालन- लोहे की एक छड़ को एक सिरे से पकड़ कर दूसरे को गर्म करें तो हम पाते हैं कि कुछ समय बाद हाथ से पकड़ा सिरा भी इतना ही गर्म हो जाता है। ऊष्मा छड़ के एक सिरे से प्रवेश कर धीरे-धीरे दूसरे तक संचरित हो पूरी छड़ को गर्म कर देती है। ऊष्मा संचरण की यह प्रक्रिया चालन कहलाती है। यह मुख्यत: ठोसों में संभव है।
संवहन- द्रवों व गैसों में ऊष्मा संवहन (convection) द्वारा संचरित होती है। इस प्रक्रिया में ऊष्मा एक स्थान से दूसरे तक, द्रव व गैसों के अपने गमन द्वारा संचरित होती है। इसलिए गर्म द्रव कम घनत्व का हो जाने के कारण ऊपर उठता है तथा उसके स्थान पर ऊपर का ठंडा द्रव नीचे की ओर आ जाता है। इस प्रकार 'संवहन धाराएंÓ बन जाती हैं और समस्त द्रव एक सामान ताप पर गर्म हो जाता है।
विकिरण- चालन व संवहन द्वारा ऊष्मा संचरण हेतु पदार्थ रूपी माध्यम की आवश्यकता होती है। विकिरण में ऊष्मा संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। सूर्य से विकिरण ऊष्मा विद्युत-चुंबकीय तरंगों के रूप से निर्वात (vaccum) से होकर सीधे पृथ्वी पर पहुँचता है।
न्यूटन का शीतलन नियम
इस नियम के अनुसार, किसी वस्तु द्वारा ऊष्मा हानि की दर वस्तु व उसके चारों ओर के ताप के अंतर के समानुपाती होती है। उदाहरणस्वरूप, गर्म जल 40oC से 30oC तक ठंडा होने की अपेक्षा 90oC से 80oC तक ठंडा होने में बहुत कम समय लेता है।
ऊष्मा धारिता एवं विशिष्टï ऊष्माधारिता
किसी वस्तु की ऊष्माधारिता (heat capacity) ऊष्मा की वह मात्रा है जो वस्तु के ताप में 1oK की वृद्धि कर सके।
वस्तु की विशिष्टï ऊष्माधारिता ऊष्मा की वह मात्रा है जो उसके 1 किलोग्राम द्रव्यमान के ताप में 1oK की वृद्धि कर सके।
अवस्था में परिवर्तन- -5oC ताप के बर्फ के एक टुकड़े को गर्म करने पर उसका तापमान धीरे-धीरे 0oC तक बढ़ता है तत्पश्चात् 0oC पर स्थिर हो जाता है, किंतु अब यह पानी में पिघलने लगता है। जब तक यह पूर्णत: पानी में नहीं परिवर्तित होता ऊष्मा तो लेता है किंतु इसके ताप (0oC) में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस प्रक्रिया में यह पाया जाता है कि 1 किग्रा. बर्फ से ०शष्ट के स्थिर ताप पर पूर्णत: जल में परिवर्तन करने हेतु 336000J ऊष्मा की आवश्यकता होती है। इसे बर्फ के गलनांक की विशिष्टï गुप्त ऊष्मा कहते हैं। वह ऊष्मा जो किसी पदार्थ के इकाई द्रव्यमान को बिना ताप परिवर्तन के (क्वथनांक पर) द्रव से वाष्प अवस्था में परिवर्तित कर दे, पदार्थ के वाष्पन की विशिष्टï गुप्त ऊष्मा कहलाती है।
आपेक्षिक आद्र्रता
वायु के एक ज्ञात आयतन में वर्तमान जल वाष्प की मात्रा तथा उसी ताप पर उतनी ही वायु को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जल-वाष्प की मात्रा के अनुपात को वायु की आपेक्षिक आद्र्रता (relative humidity) कहते हैं।
भौतिक राशियों को को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है:
(1) अदिश (Scalar) (इनमें केवल परिमाण होता है) राशियाँ
(2) सदिश (vector) (इनमें परिमाण व दिशा दोनों होते हैं) राशियाँ।
लंबाई का मात्रक
भार व माप का सामान्य सम्मेलन (General Conferences of Weight & Measures) ने 1893 में मीटर को पुन: परिभाषित किया, जिसके अनुसार यह प्रकाश द्वारा 1/299792458 सेकेंड में तय की गई दूरी है।
1. किमी = 1000 मी., 1 सेमी. = 10-2 मी.,
1 मिमी. = 10-3 मी.
1 प्रकाश वर्ष = 9.46&1015 मी.
द्रव्यमान का मात्रक
मानक किग्रा. प्लेटिनम-इरीडियम मिश्रधातु के विशेष ठोस बेलन का द्रव्यमान है, यह बेलन सेवेर्स, फ्रांस में रखा है।
1 टन = 103 किग्रा. 1 ग्रा. = 10-3 किग्रा.,
1 मिमी. = 10-6 किग्रा.
समय का मात्रक
समय का मात्रक सेकेंड है। सेकेंड को 1967 में गैसीय सीजियम परमाणुओं में ऊर्जा परिवर्तन पर आधारित परमाणु-घड़ी के अनुसार पुन: परिभाषित किया गया।
बल विज्ञान (Mechanics)
पिंडों की गति का अध्ययन ही बल-विज्ञान है।
गति
यह यांत्रिक गति दो प्रकार की होती है- स्थानांतरण (Linear) एवं घूर्णन (Rotational) ।
चाल
किसी गतिशील वस्तु की चाल, वस्तु द्वारा दूरी तय करने की दर होती है-
वेग
किसी वस्तु द्वारा इकाई समय में निर्दिष्टï दिशा में तय की गई दूरी को वेग कहते हैं।
गुरुत्वीय त्वरण
गुरुत्व के कारण होने वाला त्वरण सबसे सामान्य है। पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वीय त्वरण का मान लगभग 9.8 मी./से.2 होता है।
बल
बल किसी वस्तु की विरामावस्था या एक समान गति से सीधी रेखा में चलने की अवस्था में परिवर्तन करता है।
गुरुत्वाकर्षण बल- जो बल हमें पृथ्वी की ओर खींचे रखता है, इस बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते है। किन्हीं दो वस्तुओं के मध्य परस्पर गुरुत्वाकर्षण कार्यरत होता है।
न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम- इसके अनुसार, ब्रह्मïांड का प्रत्येक कण अन्य कणों में प्रत्येक को अपनी ओर एक बल से आकर्षित करता है, इस गुरुत्वाकर्षण बल का समीकरण सूत्र,
F= G[(m1m2)/r2]
जहाँ कणों के मध्य दूरी ह्म् तथा कणों के द्रव्यमान द्व१ व द्व२ हैं, त्र सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक है जिसका मान ६.६६&१०-११ है।
अभिकेन्द्र बल- किसी वस्तु को वृत्तीय गति में बनाए रखने के लिए उस पर एक बल वृत्त के केंद्र की ओर कार्य करता है। यह अभिकेंद्र बल कहलाता है। और इसी बल की वजह से वस्तु की गति की दिशा में निरंतर परिवर्तन होने से वह वृत्तीय गति में आती है।
अपकेंद्री बल- वृत्तीय गति में घूमती वस्तु पर कल्पित बल कार्य करने लगता है, जो अपकेन्द्री बल कहलाता है।
भार
किसी वस्तु का भार वह बल है जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण उस पर लगता है तथा पृथ्वी के केंद्र की ओर कार्यरत होता है।। जबकि द्रव्यमान वस्तु में निहित पदार्थ की मात्रा का माप है। जब हम कहते हैं कि एक व्यक्ति का वजन 60 किग्रा. है तो वास्तव में हम उसका द्रव्यमान बताते हैं न कि भार।
घर्षण
घर्षण वह बल है जो परस्पर स्पर्श करती दो सतहों के मध्य सापेक्ष गति के विपरीत कार्य करता है।
न्यूटन के गति सम्बंधी नियम
न्यूटन के गति संबंधी तीन नियमों में गति के मूलभूत सिद्धांत निहित हैं।
प्रथम नियम- प्रत्येक वस्तु अपनी विरामावस्था या समरूप गति में जब तक बनी रहती है जब तक उस पर कोई कार्य न करे।
चलती बस से नीचे उतरने पर आप को रुकने के पूर्व बस की दिशा में कुछ दूर तक दौडऩा पड़ता है। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप आगे की ओर गिर सकते हैं, क्योंकि सड़क के स्पर्श में आते ही आपके पैर स्थिर होना चाहते हैं और शरीर का ऊपरी भाग गति में बना रहना चाहता है।
द्वितीय नियम- इस नियम के अनुसार, ''किसी वस्तु के संवेग की परिवर्तन की दर लगाए गए बल के समानुपाती होती है और बल की दिशा में कार्य करती है।"
F=ma
तृतीय नियम- इस नियम के अनुसार, ''प्रत्येक बल के लिए बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।"
यदि कोई व्यक्ति दीवार पर घूंसा मारे तो दीवार पर लगा बल मु पर लगे बल के बराबर और विपरीत होता है।
कार्य, शक्ति एवं ऊर्जा
कार्य- साधारण बोलचाल में कार्य का अर्थ है कि शारीरिक अथवा मानसिक क्रिया। जब बल लगने पर वस्तु में गति (विस्थापन) हो तो बल द्वारा कार्य किया जाता है और बल व बल की दिशा में विस्थापन का गुणनफल कार्य को व्यक्त करता है।
कार्य = बल & बल की दिशा में चली गई दूरी।
W = F x d (कार्य का मात्रक जूल है)
शक्ति- कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं,
P =w/t (शक्ति का मात्रक वाट (w) है
ऊर्जा- कार्य करने की कुल क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। ऊर्जा का मात्रक जूल ही है। यांत्रिक ऊर्जा दो प्रकार की होती है- गतिज (्यद्बठ्ठद्गह्लद्बष्) और स्थितिज (क्कशह्लद्गठ्ठह्लद्बड्डद्य) ऊर्जा।
गतिज ऊर्जा- वस्तु की गति से उत्पन्न ऊर्जा, गतिज ऊर्जा कहलाती है तथा इसका समीकरण है -
गतिज ऊर्जा (KE) = 1/2 mv2
जहाँ वस्तु का द्रव्यमान द्व तथा उसका वेग 1 है। गतिमान बंदूक की गोली अथवा गतिमान पत्थर के टुकड़े में गतिज ऊर्जा होती है।
स्थितिज ऊर्जा- किसी वस्तु की अपनी स्थिति (बल क्षेत्र में) के कारण जो ऊर्जा होती है वह स्थितिज ऊर्जा कहलाती है। इसका समीकरण सूत्र है-
PE = mgh (जहाँ m वस्तु का द्रव्यमान, g गुरुत्वीय त्वरण तथा h पृथ्वी की सतह से वस्तु की ऊँचाई है )।
स्थितिज ऊर्जा के अनेक उदाहरण हैं- पृथ्वी की सतह से कुछ ऊँचाई पर पकड़कर रखा गया पत्थर।
दाब
प्रति इकाई क्षेत्रफल पर लगे बल को दाब कहते हैं।
दाब का मात्रक न्यूटन प्रति वर्ग मी. अथवा पास्कल है।
वायुमंडलीय दाब- पृथ्वी के चारों ओर काफी ऊँचाई तक वायु है जिसे वायुमंडल कहते हैं। वायु का भार होता है अत: यह पृथ्वी की सतह पर ही नहीं, बल्कि पृथ्वी पर स्थित सभी वस्तुओं पर दाब डालती है। वास्तव में, मानव एवं समुद्र की वायुमंडलीय दाब को वायुदाबमापी (barometer) द्वारा मापा जाता है।
ऊर्जा संरक्षण (Energy Conversation)
ऊर्जा को न तो समाप्त तथा न ही उत्पन्न किया जा सकता है, बल्कि इसे एक से दूसरे रूप में रूपांतरित किया जा सकता है और इस प्रकार कुल ऊर्जा एक समान संरक्षित बनी रहती है।
गुरुत्व केंद्र- किसी वस्तु का गुरुत्व केंद्र वह बिंदु होता है जिस पर वस्तु का संपूर्ण भार कार्य करता है अथवा केंद्रित होता है। गुरुत्व केंद्र वस्तु के वास्तविक पदार्थ के बाहर भी स्थित हो सकता है।
किसी वस्तु की स्थिरता उसके गुरुत्व केंद्र की स्थिति पर निर्भर करती है। नाव में बैठे यात्रियों को नदी में तैरती नाव में खड़े नहीं होने दिया जाता है, क्योंकि नाव का गुरुत्व केंद्र यात्रियों सहित नाव के आधार पर निकट बना रहता है और नाव स्थिर रहती है।
मशीन - मशीन वह युक्ति (साधन) है जिसकी सहायता से किसी सुविधाजनक बिंदु पर कम बल लगाकर अन्य बिंदु पर लगे भारी बल (भार) को हटाया (संतुलित) जा सकता है।
कार्य निवेश (work input) = कार्य बहिर्वेश (work output)
मशीन की दक्षता- मशीन द्वारा किए गए लाभदायक कार्य और निविष्टï कार्य (input work) के अनुपात को मशीन की दक्षता कहते हैं। किसी भी मशीन की क्षमता हरदम 100 से कम ही होती है।
घनत्व- किसी पदार्थ के इकाई आयतन के द्रव्यमान को घनत्व कहते हैं।
जल का घनत्व 1000 किग्रा./मी.3 है।
आपेक्षित घनत्व
किसी पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व (RD) पदार्थ के घनत्व व जल के घनत्व के अनुपात द्वारा व्यक्त किया जाता है। इसका कोई मात्रक नहीं होता।
उत्प्लावन (Upthrust)
यदि लकड़ी के एक गुटके को जल की सतह से नीचे पकड़कर छोड़ दिया जाता है तो हम देखते हैं कि वह तुरंत ही ऊपर सतह पर आ जाता है। इसका कारण यह है कि गुटके पर ऊपर की ओर जल के कारण एक बल कार्य करता है जिसे उत्प्लावन बल कहते हैं। द्रव की तरह गैसें भी वस्तु पर उत्प्लावन लगाती हैं।
आर्किमिडीज़ का सिद्धांत-इस सिद्धांत के अनुसार, जब कोई वस्तु आंशिक रूप से किसी द्रव में डूबी हो तो उस पर एक उत्प्लावन कार्य करता है जो वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होता है।
ऊष्मा
आंतरिक ऊर्जा- पदार्थ के अणु निरंतर गति में होते हैं और इन अणुओं की कुल गतिज व स्थितिज ऊर्जा को पदार्थ की 'आन्तरिक ऊर्जा' कहते हैं। आंतरिक ऊर्जा जितनी अधिक होगी पदार्थ उतना ही अधिक गर्म होगा।
ताप व ऊष्मा- किसी वस्तु का ताप वह मात्रा है जिससे हमें यह ज्ञात होता है कि एक मानक वस्तु की अपेक्षा वह वस्तु कितनी गर्म अथवा ठंडी है। ताप को तापमापी (Thermometer) से मापा जाता है। तापमापी के विïिवध प्रकार हैं, किंतु सामान्य प्रचलन में काँच की नली में भरे पारे के बने तापमापी में पारे के प्रसार व संकुचन से ताप का मापन किया जाता है।
तापमापी के पैमाने का निर्धारण उसका शून्यांक शुद्ध बर्फ के गलनांक को शून्य मानकर तथा पारे के 760 मिमी के मानक वायुमंडलीय दाब पर उबलते जल से निकलती भाप के ताप को 100 का अंशाकार मानकर, करते हैं। शून्य व 100 बराबर अंशों में विभक्त कर प्रत्येक अंश को एक अंश (डिग्री) मान लेते हैं। इस प्रकार प्राप्त पैमाना सैल्सियस पैमाना कहलाता है तथा इस पर ताप को अंश (oC) से व्यक्त करते हैं।
फारेनहाइट पैमाने में 0oC को 32o तथा 100oC में 212o अंशांकित किया जाता है। फारेनहाइट से सेल्सियस में ताप गणना के लिए संबंध सूत्र निम्न हैं-
tc = 5/9(tF - 32)
tc व tF क्रमश: सेल्सियस व फारेनहाइट पैमाने पर संगत ताप हैं।
ऊष्मीय प्रसार- ठोसों, द्रवों व गैसों को गर्म करने पर सामान्यतया उनमें प्रसार और ठंडा करने पर संकुचन होता है।
प्रसारणीयता (Expansivity) - किसी 1 मी. लम्बी लोहे की छड़ को 1oC गर्म करें तो उसकी लंबाई में 0.000012 मी. की वृद्धि होगी। इसलिए हम कह सकते हैं कि लोहे की रेखीय-प्रसरणीयता 0.000012/oC है।
जल का अंसगत प्रसार (anomalous)
जल में असंगत रूप से प्रसार होता है। जल के असंगत प्रसार की वजह से ही जल में रहने वाले जीव-जंतु बहुत ठंडे मौसम में जीवित रह जाते हैं।
ऊष्मा-संचरण
ऊष्मा का संचरण निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है-
चालन- लोहे की एक छड़ को एक सिरे से पकड़ कर दूसरे को गर्म करें तो हम पाते हैं कि कुछ समय बाद हाथ से पकड़ा सिरा भी इतना ही गर्म हो जाता है। ऊष्मा छड़ के एक सिरे से प्रवेश कर धीरे-धीरे दूसरे तक संचरित हो पूरी छड़ को गर्म कर देती है। ऊष्मा संचरण की यह प्रक्रिया चालन कहलाती है। यह मुख्यत: ठोसों में संभव है।
संवहन- द्रवों व गैसों में ऊष्मा संवहन (convection) द्वारा संचरित होती है। इस प्रक्रिया में ऊष्मा एक स्थान से दूसरे तक, द्रव व गैसों के अपने गमन द्वारा संचरित होती है। इसलिए गर्म द्रव कम घनत्व का हो जाने के कारण ऊपर उठता है तथा उसके स्थान पर ऊपर का ठंडा द्रव नीचे की ओर आ जाता है। इस प्रकार 'संवहन धाराएंÓ बन जाती हैं और समस्त द्रव एक सामान ताप पर गर्म हो जाता है।
विकिरण- चालन व संवहन द्वारा ऊष्मा संचरण हेतु पदार्थ रूपी माध्यम की आवश्यकता होती है। विकिरण में ऊष्मा संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। सूर्य से विकिरण ऊष्मा विद्युत-चुंबकीय तरंगों के रूप से निर्वात (vaccum) से होकर सीधे पृथ्वी पर पहुँचता है।
न्यूटन का शीतलन नियम
इस नियम के अनुसार, किसी वस्तु द्वारा ऊष्मा हानि की दर वस्तु व उसके चारों ओर के ताप के अंतर के समानुपाती होती है। उदाहरणस्वरूप, गर्म जल 40oC से 30oC तक ठंडा होने की अपेक्षा 90oC से 80oC तक ठंडा होने में बहुत कम समय लेता है।
ऊष्मा धारिता एवं विशिष्टï ऊष्माधारिता
किसी वस्तु की ऊष्माधारिता (heat capacity) ऊष्मा की वह मात्रा है जो वस्तु के ताप में 1oK की वृद्धि कर सके।
वस्तु की विशिष्टï ऊष्माधारिता ऊष्मा की वह मात्रा है जो उसके 1 किलोग्राम द्रव्यमान के ताप में 1oK की वृद्धि कर सके।
अवस्था में परिवर्तन- -5oC ताप के बर्फ के एक टुकड़े को गर्म करने पर उसका तापमान धीरे-धीरे 0oC तक बढ़ता है तत्पश्चात् 0oC पर स्थिर हो जाता है, किंतु अब यह पानी में पिघलने लगता है। जब तक यह पूर्णत: पानी में नहीं परिवर्तित होता ऊष्मा तो लेता है किंतु इसके ताप (0oC) में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस प्रक्रिया में यह पाया जाता है कि 1 किग्रा. बर्फ से ०शष्ट के स्थिर ताप पर पूर्णत: जल में परिवर्तन करने हेतु 336000J ऊष्मा की आवश्यकता होती है। इसे बर्फ के गलनांक की विशिष्टï गुप्त ऊष्मा कहते हैं। वह ऊष्मा जो किसी पदार्थ के इकाई द्रव्यमान को बिना ताप परिवर्तन के (क्वथनांक पर) द्रव से वाष्प अवस्था में परिवर्तित कर दे, पदार्थ के वाष्पन की विशिष्टï गुप्त ऊष्मा कहलाती है।
आपेक्षिक आद्र्रता
वायु के एक ज्ञात आयतन में वर्तमान जल वाष्प की मात्रा तथा उसी ताप पर उतनी ही वायु को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जल-वाष्प की मात्रा के अनुपात को वायु की आपेक्षिक आद्र्रता (relative humidity) कहते हैं।