- प्रथम परमाणु परिक्षण 18 मई 1974
- द्वितीय परमाणु परिक्षण
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►-11 मई 1998:- तीन एटमी डिवाइस का परीक्षण |
►-13 मई 1998:- दो एटमी डिवाइस का परीक्षण |
►-स्माईलिँग बुद्धा भी कहा जाता हैँ ।
►-सिर्फ इन्हें मालूम थाः- PM अटलबिहारी वाजपेयी , तत्कालीन उपप्रधानमंत्री व गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी , तत्कालीन विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा , तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्र रक्षा मंत्री को 48 घंटे पहले बताया उस समय के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीज और वित्त मंत्री जसवंत सिंह तक को 48 घंटे पहले बताया गया था ।
►- परीक्षण में शामिल 80 से ज्यादा वैज्ञानिक एक साथ पोकरण रवाना नहीं हुए
►- बदले नामों से छोटे समूह में भिन्न शहरों में पहुंचे, जहां से वे जैसलमेर के सैन्य ठिकाने तक गए और फिर सेना उन्हें पोकरण ले गई ।
►- समूह काम करके लौटता , तब दूसरा वहां पहुंचता ।
►- पत्नियों व परिवार के सदस्यों को सेमिनार व सम्मेलनों का कारण बताकर रवाना हुए ।
►-नामों में कोड के इस्तेमाल से वैज्ञानिक इतने चकरा गए कि वे कहने लगे कि इससे तो भौतिकी के हमारे जटिल समीकरण आसान लगते हैं ।
►-सारे टेक्निकल स्टाफ ने सैन्य वर्दी पहन ली ताकि अमेरिकी उपग्रह की छवियों में यही नजर आए कि वे परीक्षण स्थल की निगरानी करने वाले सैनिक हैं ।
** ऐसे दिया अमेरिका को चकमा **
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►-1995 में तब के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने परमाणु परीक्षण का फैसला किया था , लेकिन अमेरिकी उपग्रहों ने परीक्षण स्थल की गतिविधियों को देख लिया और अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत सरकार पर दबाव डालकर परीक्षण होने नहीं दिया । इससे सबक लेकर ऑपरेशन शक्ति में सावधानी बरती गई ।
►- परीक्षण स्थल पर तैयारी का ज्यादातर काम रात में किया गया ।
►- भारी उपकरण इस्तेमाल के बाद तड़के उसी जगह पर रख दिए जाते ताकि अमेरिकी उपग्रह की छवियों का विश्लेषण करने वाले समझे कि उन उपकरणों को हिलाया ही नहीं गया ।
►- परमाणु परीक्षण के लिए जमीन में चैंबर तैयार करते समय निकली रेत को रेतीले तूफान में बनने वाले टीलों की शक्ल दी गई ।
►- परीक्षण स्थल पर पहले ही उपयोग में नहीं लाए जा रहे नौ कुएं ‘नवताल’ मौजूद थे, जिससे खुदाई का काम आसान हो
►- चैंबर के लिए खड्ढे खोदने की जगह पर नेट लगाई व उस पर घास-पत्तियां डालकर उसे छिपा दिया गया ।
** ऐसे रवाना हुए हथियार **
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►-मई:- बार्क से कर्नल उमंग कपूर के नेतृत्व में सेना के चार ट्रक इन्हें लेकर सुबह 3:00 बजे मुंबई एअरपोर्ट रवाना हुए ।
►-32 परिवहन विमान इन्हें लेकर जैसलमेर के सैन्य ठिकाने की ओर रवाना हुआ ।
►- जैसलमेर से सेना के चार ट्रक तीन खेपों में परमाणु साधन व अन्य सामग्री पोकरण ले गए ।
►-सारी चीजें परीक्षण की तैयारी वाली इमारत प्रेयर हॉल में पहुंचाई गई ।
क्या व्हिस्की सर्व करना शुरू किया जब परमाणु डिवाइस उनके निर्धारित चैंबर में रखे जा रहे थे तो दिल्ली से पूछा गया , क्या सिएरा ने कैंटीन में व्हिस्की सर्व करना शुरू कर दिया है? (क्या परमाणु उपकरण को उसके स्पेशल चैंबर (व्हाइट हाउस, व्हिस्की जिसका कोडनेम था) में रख दिया गया है और क्या वैज्ञानिकों (सिएरा) ने काम शुरू कर दिया है ।
थोड़ी देर बाद फिर संदेश आया, क्या चार्ली जू चला गया है और ब्रेवो प्रार्थना में लग गया है?
►- माइक ऑन। (क्या डीआरडीओ की टीम कंट्रोल रूम (जू) चली गई है और क्या बार्क की टीम प्रेयर हॉल (जहां उपकरणों को असेंबल किया जा रहा था) में चली गई है। सैन्य अभियान के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल वर्मा (माइक) प्रगति जानना चाहते हैं ।
** ऐसी कूटनीति कि दुनिया को भनक तक न पड़ी **
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►-भारतीय राजनेताओं व कूटनीतिज्ञों ने ऐसे बयान दिए, जिससे लगे कि अपनी एटमी स्थिति को लेकर भारत असमंजस में है और वे भाजपा द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान परमाणु परीक्षण करने के वादे को गंभीरता से न लें ।
►- रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीज व विदेश सचिव के. रघुनाथ ने अमेरिकी अधिकारियों को बैठकों में बताया कि भारत ने अभी एटमी टेस्ट के बारे में कुछ तय नहीं किया है और इसके लिए 26 मई को राष्ट्रीय सुरक्षा की बैठक बुलाई गई है
►- दोनों ने अमेरिका व विश्व समुदाय को साफ बताया कि भारत अचानक परीक्षण कर चौंकाएगा नहीं ।
►- एटमी साधन पहुंचे ताप नाभिकीय डिवाइस 200 फीट गहराई में एक चैंबर में रखा गया, जिसे व्हाइट हाउस नाम दिया गया था ।
►- विखंडन अर्थात फिशन आधारित परमाणु बम को 150 फीट गहरे गड्ढे ताज महल में रखा गया ।
►- एक किलोटन से कम वाले उपकरण को कुंभकरण नामक चैंबर में रखा गया ।
►- दूसरी सीरीज में टेस्ट किए जाने वाले उपकरणों को जहां रखा गया उन्हें एनटी1 व एनटी2 नाम दिया था ।
►- 10 मई को परीक्षण के तीनों उपकरण अपने चैंबर में रख दिए गए और इन्हें सील किया गया । अंतिम चैंबर अगले दिन सुबह साढ़े सात बजे सील किया गया परीक्षण के नियत समय से 90 मिनट पहले सबकुछ तैयार था ।
अगर पिछले कुछ वर्ष अच्छे होते तो शायद ये मुसीबत नहीँ आती |
** इनका हुआ परीक्षण **
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►- शक्ति 1 : यह दो चरण वाला ताप नाभिकीय उपकरण था। 200 किलो टन की ऊर्जा देने में सक्षम इस उपकरण को परीक्षण के लिए 45 टन की क्षमता का बनाया गया था। वास्तव में यह कोई परमाणु हथियार नहीं था। इसे देश की हाइड्रोजन बम क्षमता जांचने और भविष्य में हथियार बनाने के उद्देश्य से आंकड़े इकट्ठे करने के लिए बनाया गया था। 1000 किलो टीएनटी बारूद के विस्फोट जितनी ऊर्जा निकलने की क्षमता को 1 किलोटन कहते हैं।
►- शक्ति 2 - 15 किलोटन ऊर्जा छोड़ने वाला प्लूटोनियम के विखंडन की प्रक्रिया पर आधारित यह डिवाइस वाकई एक परमाणु हथियार था। इसे बमवर्षक विमान से गिराया अथवा मिसाइल पर लादकर दागा जा सकता था। यह 1974 के पहले परीक्षण में इस्तेमाल डिवाइस का ही परिष्कृत रूप था। परीक्षण से इसमें लाए गए सुधार की पुष्टि हुई।
►- शक्ति 3 - 0.3 किलोटन का यह डिवाइस यह पता लगाने के लिए बनाया गया था कि रिएक्टर में इस्तेमाल होने वाले प्लूटोनियम से परमाणु हथियार बनाया जा सकता है या नहीं। इसके जरिए परमाणु विस्फोट को नियंत्रित करने और जरूरत पड़ने पर ऊर्जा निकास की मात्रा कम करने की भारत की महारत को प्रदर्शित करना भी था।
►- शक्ति 4 - 0.5 किलोटन का यह प्रायोगिक उपकरण था। इसके परीक्षण का उद्देश्य आंकड़े इकट्ठा करना और बम के विभिन्न हिस्सों के प्रदर्शन की जांच करना था।
►- शक्ति 5 - 0.2 किलोटन के इस प्रायोगिक उपकरण में यूरेनियम 233 का इस्तेमाल किया गया, जो प्रकृति में नहीं पाया जाता और थोरियम से चलने वाले देश के फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों में बनता है। इसके जरिए भी आंकड़े इकट्ठे किए गए।
►- शक्ति 6 - एनटी3 नामक शाफ्ट में एक और कम ऊर्जा वाला नाभिकीय उपकरण रखा गया था, लेकिन पांच धमाकों के बाद परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन प्रमुख आर. चिदंबरम ने कहा कि वांछित आंकड़े उपलब्ध हो गए हैं। इसके परीक्षण की जरूरत नहीं है। उनके शब्द थे, इसे क्यों जाया किया जाए।
►- * चैबरों को अच्छी तरह सील करने के बाद भी परमाणु विकिरण का खतरा रहता है। अमेरिका में परीक्षण के दौरान ऐसा हो चुका था। इसलिए आबादी की तरफ बह रही हवा के रुख बदलने का इंतजार किया गया।
►- * तापमान 43 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका था। फिर दोपहर बाद हवा का बहना लगभग बंद हो गया और परीक्षण करने का निर्णय लिया गया।
►- * परीक्षण स्थल के इंचार्ज डॉ. संथानम ने उल्टी गिनती शुरू करने की प्रणाली की दो चाबियां सुरक्षा के इंचार्ज डॉ. एम. वासुदेव को दीं। उन्होंने एक-एक चाबी बार्क व डीआरडीओ के प्रतिनिधियों को दी। दोनों ने मिलकर उल्टी गिनती की प्रणाली शुरू की।
►- * दोपहर बाद 3:45 बजे तीन परमाणु उपकरणों में विस्फोट हो गया।
* धमाके होते ही क्रिकेट के मैदान जितना हिस्सा जमीन से कुछ मीटर ऊपर उछल गया। हवा में धूल व रेत का गुबार छा गया।
►- * मरु भूमि पर तीन बड़े गड्ढे बन गए।
►- * दो दिन बाद 13 मई को दोपहर 12:21 बजे दो और उपकरणों में विस्फोट किया गया। इनके कंपनों को भूंकपीय शालाओं में रिकॉर्ड नहीं किया जा सका, क्योंकि ये बहुत कम क्षमता के थे।
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