Monday 28 March 2016

गौरवपूर्ण / रक्तहीन क्रांति (1688)

►- गौरवपूर्ण / रक्तहीन क्रांति (1688) :-
1688 में स्टुअर्ट वंश के राजा जेम्स द्वितीय की कैथोलिक निरंकुशता तथा अडिय़लपन से तंग आकर जनता ने विद्रोह कर दिया और उसकी लड़की मेरी और उसके पति हालैण्ड के राजा विलियम को इंग्लैण्ड का सिंहासन सौंप दिया। यह परिवर्तन बिना रक्तपात के हुआ, इस कारण इसे रक्तहीन क्रांति कहा जाता है।

राजनीतिक कारण:
(1) जेम्स द्वितीय की निरंकुशता : जेम्स द्वितीय निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी शासक था। उसने अपनी सेना में वृद्धि की, जिससे कि वह जनता को आतंकित कर सके। निरंकुश शासन और शासन का कटु अनुभव जनता को पहले ही था। फलतः जनता द्वारा जेम्स का विरोध होना स्वाभाविक था।

(2) संसद द्वारा अधिकारों के लिये संघर्ष : संसद अपने विशष्ट अधिकारों का उपयोग चाहती थी। वह राजा के अधिकारों को सीमित और नियंत्रित करना चाहती थी। फलतः राजा और संसद के मध्य संघर्ष प्रारंभ हो गया। इस संघर्ष का अंत शानदार क्रांति के रूप में हुआ और अंत में संसद ने राजा पर विजय प्राप्त की।

(3) खूनी न्यायालय - चार्ल्स द्वितीय के अवैध पुत्र मन्मथ ने सिंहासन प्राप्ति के लिए जेम्स के विरूद्ध विद्रोह कर दिया और स्वयं को चार्ल्स द्वितीय का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। जेम्स द्वितीय ने मम्मथ को युद्ध में परास्त कर बंदी बना लिया और उसे तथा उसके साथियों को न्यायालय द्वारा मृत्यु दण्ड दिया गया। इस न्यायालय को खूनी न्यायालय कहा गया। स्काटलैण्ड में भी अर्ल ऑफ अरगिल ने व्रिदोह किया। इस विद्रोह का भी कठोरता से दमन किया गया। तीन सौ व्यक्तियों को मृत्यु दण्ड दिया गया और 800 व्यक्तियों को दास बनाकर वेस्टइंडीज द्वीपों में भेजकर बेच दिया गया। स्त्रियों और बच्चों को भी क्षमा नहीं किया गया। इस क्रूरता और निर्दयता से जनता उससे रुष्ट हो गयी।

(4) जेम्स द्वितीय की निष्फल विदेश-नीति : जेम्स द्वितीय फ्रांस के केथोलिक राजा लुई चतुर्दश से आर्थिक और सैनिक सहायता प्राप्त कर इंग्लैण्ड में अपना निरंकुश स्वेच्छाकारी शासन स्थापित करना चाहता था। वह लुई चौदहवें के धन और सैनिक सहायता के आधार पर राज करना चाहता था। लुई केथोलिक था और फ्रांस मेंं प्रोटेस्टेंटों पर अत्याचार कर रहा था। इससे ये प्रोटेस्टेंट इंग्लैण्ड में आकर शरण ले रहे थे। ऐसी दश में इंग्लैण्डवासी और संसद सदस्य नहीं चाहते थे कि जेम्स लुई से मित्रता रखे और उससे सहायता प्राप्त करे। अतः वे जेम्स के विरोधी हो गये।

धार्मिक कारण 
(1) केथोलिक धर्म के लिए प्रसार - जेम्स केथोलिक मत का अनुयायी था, जबकि इंग्लैण्ड की अधिकांश जनता एंग्लिकन मत की अनुयायी थी। जेम्स केथोलिकों को अधिकाधिक सुविधाएँ प्रदान करना चाहता था। जेम्स ने पोप को इंग्लैण्ड में आमंत्रित किया और उसका अत्याधिक सम्मान किया। उसने लंदन में केथोलिक गिरजाघर भी स्थापित किया। इससे इंग्लैण्ड के प्युरीटन और प्रोटेस्टेंट उसके विरोधी हो गये।

(2) टेस्ट अधिनियम को स्थगित करना - टेस्ट अधिनियम के अंतर्गत केवल एंग्लिकन चर्च के अनुयायी ही सरकारी पद पर रह सकते थे। जेम्स ने इस अधिनियम को स्थगित कर अनेक केथोलिकों को राजकीय पदों पर प्रतिष्ठित किया। मंत्री, न्यायाधीश, नगर-निगम के सदस्य तथा सेना में ऊँचे पदों पर केथोलिक नियुक्त किए गए। अतः सांसद इससे रुष्ट हो गये।

(3) विश्वविद्यालयों में हस्तक्षेप : केथोलिक मतावलंबी होने से जेम्स ने विश्वविद्यालयों में भी ऊँचे पदों पर केथोलिक नियुक्त कर दिये। क्राइस्ट चर्च कॉलेज में अधिष्ठाता के पद पर और केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर एक केथोलिक को नियुक्त किया। मेकडॉनल्ड विद्यालय के भीशक्षा अधिकारियों को पृथक कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने एक केथोलिक को सभापित बनाने से इंकार कर दिया था। इससे प्रोटेस्टेंट सम्प्रदाय के लोग जेम्स विरोधी हो गये।

(4) धार्मिक अनुग्रहों की घोषणाएँ : जेम्स द्वितीय ने इंग्लैण्ड को केथोलिक देश बनाने के लिए 1687 ई. और 1688 ई. में दो बार धार्मिक अनुग्रह की घोषणा की। प्रथम घोषणा से केथालिकों तथा अन्य मताबलम्बियों पर लगे प्रतिबंधों और नियंत्रणों को समाप्त कर दिया गया और द्वितीय घोषणा में वर्ग व धर्म का पक्षपात किये बिना सभी लोगों के लिए राजकीय पदों पर नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया साथ ही कैथलिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई। इससे संसद में भारी असंतोष व्याप्त हो गया एवं सांसद उसके घोर विरोधी हो गये।

(5) सात पादरियों पर अभियोग और उनको बंदी बनाना - जेम्स ने यह आदेश दिया कि प्रत्येक रविवार को उसकी द्वितीय धार्मिक घोषणा पादरियों द्वारा चर्च में प्रार्थना के अवसर पर पढ़ी जाए। इसका यह परिणाम होता कि या तो पादरी अपने धर्म व मत के विरूद्ध इस घोषणा को पढ़ें, अथवा राजा की आज्ञा का उल्लंघन करें। इस पर केंटरबरी के आर्च बिशप सेनक्राफ्ट ने अपने 6 साथियों सहित जेम्स को एक आवेदन पत्र प्रस्तुत किया। जिसमें जेम्स से निवेदन किया था कि वह अपनी आज्ञा को निरस्त कर दे और पुराने नियमों को भंग करने की नीति को त्याग दें। इससे जेम्स ने कुपित होकर इन पादरियों को बंदी बना कर उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया, पर न्यायाधीशों ने उनको दोष मुक्त कर दिया। इससे जनता और सेना ने पादरियों की मुक्ति पर हर्ष और जेम्स के प्रति विरोध व्यक्त किया।

(6) कोर्ट ऑफ हाई कमीशन की स्थापना : 1686 ई. में जेम्स ने गिरजाघरों पर राजकीय श्रेष्ठता पूर्ण रूप से स्थापित करने के लिए ‘‘कोर्ट ऑफ हाई कमीशन’’ को पुनः स्थापित कर लिया। इसमें केथोलिक धर्म की अवहेलना करने वालों पर मुकदमा चलाकर उनको दण्डित किया जाता था।

(7) नवीन केथोलिक गिरजाघर, 1686 ई. - जेम्स ने केथोलिक धर्म के अधिक प्रचार और प्रसार के लिए लंदन में एक नवीन केथोलिक गिरजाघर स्थापित किया। जेम्स ने धा र्मिक न्यायालयों की स्थापना करके कानून को भंग किया, गिरजाघरों, विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों पर आक्रमण कर पादरियों और टोरियों को रुष्ट किया। जेम्स के इन अनुचित और अवैध कार्यों से देश में विरोध और क्रांति की भावनाएँ फैल गयीं।


बिल ऑफ राइट्स (1689) :-  1689 में विलियम और मेरी को इंग्लैण्ड के सिंहासनारोहण के समय अधिकारों की घोषणा की रक्षा की शपथ लेनी पड़ी। अधिकारों की यही घोषणा 'बिल ऑफ राइट्स' कही जाती है। इस घोषणा-पत्र द्वारा निरंकुश राजतंत्र का अंत होकर एक संवैधानिक राजतन्त्र का जन्म हुआ।

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